कोविड-19 महामारी का एक बड़ा साइड इफेक्ट यही रहा है कि उसकी वजह से दुनिया के कई स्कूली बच्चों को स्मार्टफोन का उपयोग करना पड़ा. अब इसकी आदत गंभीर रूप लेने लगी है. कोविड महामारी के दौरान करोड़ों लोगों में स्मार्टफोन की लत बढ़ी और इसलिए अब इसके नुकसान की चर्चाएं भी खूब हो रही हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ की सहयोगी संस्था यूनेस्को की “शिक्षा में तकनीक” पर एक रिपोर्ट में देशों से गुजारिश की है कि वे इस बात का गंभीरता और सावधानी से अवलोकन करें कि तकनीक का स्कूलों में उपयोग कैसे हो रहा है. इसके लिए रिपोर्ट में यहां तक अनुशंसा की गई है कि स्कूलों में स्मार्ट फोन पर प्रतिबंध लगा दिया जाए.
मानव केंद्रित नजरिए की जरूरत
गंभीर चेतावनी देने वाली इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि स्कूलों में मानव केंद्रित दृष्टिकोण की जरूरत है जहां डिजिटल तकनीक एक उपकरण के तौर पर काम करे ना कि हावी ही हो जाए. यूएन न्यूज से बात करते हुए यूनेस्को के मानोस एंटोनिनिस ने शिक्षा तकनीक में आंकड़ों के लीक होने भी चेतावनी दी है क्योंकि केवल 16 फीसदी देश ही कानूनी तौर पर क्लासरूम डेटा निजता की गारंटी देती है.
50 करोड़ छात्र वंचित
एंटोनिनिस का कहना है कि बहुत सारे आंकड़े बिना नियामक या नियंत्रण के उपयोग में लाया जाता है, इसलिए उसका उपयोग गैरशिक्षा मकसदों, व्यवसायिक उद्देश्यों के होता है जो कि अधिकारों का हनन है जिसे नियंत्रित किया जाना जरूरी है. रिपोर्ट में डिजिटल लर्निंग के कारण पैदा हो रही असमानताओं को भी रेखांकित किया गया है. महामारी के दौरान 50 करोड़ छात्र केवल ऑनलाइन शिक्षा होने की वजह से पढ़ाई छोड़ गए. इसमें यूरोप और उत्तरी अमेरिका ज्यादा फायदे रहे.
नए मानक स्थापित करने की जरूरत
ऐसे में यूनिस्कों ने देशों से शिक्षा के लिए डिजाइन की जा रही है तकनीक के लिए अपने खुद के मानक स्थापित करने का आग्रह किया है और शिक्षा का इस तरह से उपयोग किया जाए कि उसमें इंसान और शिक्षक की अगुआई में निर्देशन, की जगह कुछ भी ना ले सके. लेकिन यूनेस्को केडायरेक्टर जनरल ऑद्रे एजॉले मानते हैं कि डिजिटल क्रांति में क्षमता तो है, लेकिन शिक्षा में उपयोग के तरीके पर ध्यान देने की जरूरत है.
तकनीकी के उचित उपयोग की जरूरत
टेक्नोलॉजी इन एजूकेशन: अ टूल ऑन हूज टर्म्स? नाम की यह रिपोर्ट ऊरुग्वे में हुए यूनेस्को के एक कार्यक्रम में जारी की गई थी. इसमें तकनीकी के सही उपयोग से निपटने की जररूत पर बल दिया गया. क्योंकि तकनीक का फायदा कई अक्षम छात्रों को हा सकता है. इसमें कई अविश्वसनीय अवसर भी छिपे हुए हैं. एंटीनोनिस कहते हैं कि हमें अपने इतिहास से सबक लेते इस बात का ध्यान रखना होगा कि पुरानी गलतियां दोहराई ना जाएं. बच्चों को तकनीक के साथ और उसके बिना दोनों तरह से, प्रचुर सूचना में क्यों उपयोगी है और किसे नजरअंदाज करना है, सिखाना होगा.
सभी वर्गों को शिक्षा में शामिल करना
कोविड-19 में तकनीक ने कुछ अवसर तो पैदा किए लिए बहुत सारे ग्रामीण और अलग-थलग किए गए समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिक्षा का अधिकार सार्थक कनेक्टिविटी के अधिकार का पर्यायवाची बना हुआ है. वहीं दुनिया में चार में एक प्राथिमक विद्यालय में बिजली नहीं है ऐसे में दुनिया को स्कूलों के इंटरनेट से जोड़ने के लिए भी लक्ष्य निर्धारित करने होंगे. जिससे वंचित वर्ग को भी शिक्षा के दायरे में कायम रखा जा सके.
तकनीक के विकास का दबाव
इस विषय पर एक बड़ी समस्या यह है कि इस मामले में अधिकांश जानकारी या प्रमाण केवल अमेरिका से मिले हैं. यूनेस्को का कहना है कि तकनीक का विकास शिक्षण तंत्रों पर ढलने के लिए दबाव पैदा कर रहा है, वहीं आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के आने से डिजिटल साक्षरता और क्रिटिकल थिंकिंग का महत्व बढ़ रहा है.
रिपोर्ट बताती है कि अनुकूलन की यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. सर्वेकिए गए देशों में 54 फीसद ने ऐसे कौशल के विकास पर जोर दिया है जो भविष्य में काम आएंगे. लेकिन 51 में केवल 11 देशों में ही आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सका है. लेकिन एंटोनिनिस कहते हैं कि यह बात भूलना नहीं चाहिए कि डिजिटल दुनिया में घूमने के लिए किसी खास क्षमता या कौशल की जरूरत नहीं होती है. वहीं तकनीक के शिक्षा में उपयोग के लिए शिक्षकों को भी सही प्रशिक्षण देना होगा. अमूमन उनके प्रशिक्षण कार्यक्रमों में साइबर सिक्योरिटी शामिल नहीं किया जाता है जबकि 5 फीसद रैनसमवेयर हमले शिक्षा पर केंद्रित होते हैं.
Nice
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